गुस्ताखी माफ मैं जो बहुत बोलूँ, यूँ ही लबों को खोलूँ तो गुस्ताखी माफ.. मेरी हर बात पर सीधी राय है ये गर चुभे तो गुस्ताखी माफ.. मैं लिखती हूँ दिल की बेचैनियाँ और बेबसियों को, जो लिख दूँ गर तुम्हारी बेवफ़ाइयाँ भी तो गुस्ताख़ी माफ .. शिकवा नहीं है के जिंदगी तुझसे मुझे बस ज़ख्म मिले, गर माँग लू तुझसे कभी जो मैं मरहम तो गुस्ताखी माफ़.. याद हूँ तुमको तुम कहते हो मगर याद नहीं आती मैं, मैं कमजर्फ जो कभी ये शिकवा करूँ तो गुस्ताखी माफ.. मैं रहती हूँ सदा नियमो की बेड़ियाँ पाँव में बांधके, जो कभी मैं 'सखी' भूले से इन्हें तोड़ूँ तो गुस्ताखी माफ। ©Lata Sharma सखी #Forgiveness #Forgive #गुस्ताखी_माफ