दिनकर फिर कनक सा चमका पूरब में, सुबह-सुबह चिड़ियाँ चहके नीले नभ में.. फुदक रही गौरैया मेरे मटमैले आँगन में, तरह-तरह के सुमन खिल रहे उपवन में.. कल-कल बहकर नदियाँ पहुँचे सागर में, खुशियों के नव दीप जल रहे घर- घर में.. बुलबुल,कोयल लगे गीत गाने कानन में, देख नजारा अति प्रसन्नता है तन-मन में.. भानू की रौशन किरणे फैली सब जग में, हुआ उजाला प्रत्येक जन के रग - रग में.. "सुप्रभात" गोविन्द पन्द्राम #sunrays_सुप्रभात