शब्द रूपी पुष्पों से सज्जित , आज तथा कल रखता हूँ लेखक हूँ मैं , शब्दों का विस्तृत गुणन फल रखता हूँ , मर्म मेरा शब्दों में ढलकर बन पलकों से धार बहे झरने सा निर्मल हृदय , ना द्वेष कलह छल रखता हूँ , लेखक हूँ मैं , शब्दों का विस्तृत गुणन फल रखता हूँ , - नौशाद सदर ख़ान शब्द रूपी पुष्पों से सज्जित , आज तथा कल रखता हूँ लेखक हूँ मैं , शब्दों का विस्तृत गुणन फल रखता हूँ , कभी तृप्त हूँ , मैं तृष्णा में कभी सूखे में जल रखता हूँ ,