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कुरूपता इस विश्व में किसी को भी प्रिय नहीं है। सुं

कुरूपता इस विश्व में किसी को भी प्रिय नहीं है। सुंदर व्यक्ति की ओर ही नहीं, बल्कि वस्तुओं की ओर भी लोग खान्दे चले जाते हैं। प्रातःकाल के कलाकारों में जब फूल खिले होते हैं तो वे कितने सुंदर दिखते हैं कि इन फेरने का जी भी नहीं करता, प्रकृति जहां सुरभित, पुष्पित और पुष्पित होती है, झरने झरते हैं, पक्षी कुकते हैं, वहां का दृश्य देखकर आत्म विभोर हो जाता है हैं। आध्यात्मिक आत्मा की चिर-पिपासा है। खूबसूरती में ही जीव को मजा आता है। सुन्दर बनने की अभिलाषा भी आध्यात्मिक है। इसलिए इसे प्राप्त करना मनुष्य का स्वभाव प्रदत्त स्वभाव ही है।

©lavanyabeauti
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