गंवाया नहीं आंखों से निकला अश्क। उठा के उसे इश्क के धागे में पिरोते रहे । आंएगे और हाल पूछेंगे कभी तो वो। आश इसी में हम ख़ाव संजोते रहे। सुदेश दीक्षित ©Varun Vashisth #samay