हा !मैं एक कलाकार हूँ , अपनी कला से करती बहुत प्यार हूँ अपनी कला को मैं बेचती नही हूँ अपनी आजाद कलम से लिखती हूँ अपनी भावनाओं में बहते हुए हर उन लम्हो को ,उन पलों को जो समंदर से भी गहरे है जीती बार बार हूँ लिखती हूँ रूह ए जज़्बात लिखती हूँ रूह ए अहसास जो देते हैं मेरी रूह को सुकूँ मेरी रूह पर ना कोई पाबंदी है मैं हूँ एक आज़ाद रूह एक आज़ाद ख्याल दिल मे रहता नही मेरे कोई भी मलाल शाम -ओ -सहर बस कलम चलती है अपने ही रंग -रूप में ये ढलती है ना कोई बंदिश है रूह पर ,ना कोई दायरे है उड़ती है बन परिंदा खुले आसमाँ में कोई पढ़े या ना पढ़े बस लिख कर चैन आता है जैसे किसी भूखे का पेट भोजन से भर जाता है छानती हूँ छलनी में आटे की तरह एक -एक शब्द और फिर आटे की तरह शब्दो को गूथ देती हूँ फिर सिकती है बड़ी प्यारी शब्दो की रोटियां परोसती हूँ उसे ऐसे कि खाने वाले कि भूख बढ़ जाये और खुद को भी परोसते हुए वो आंनद मिल जाये मिलता है रूह- ए -सुकूँ जब कोई महफ़िल में वाह- वाह कर उठता है समझो लिखा हुआ सार्थक हो जाता है और दिल को आराम मिलता है ©Dr Manju Juneja #अजादसोच #ख्याल #कलाकार #आसमाँ #परिंदा #आजादकलाकार #शब्द #बंदिश #MereKhayaal