तेरी बातें इतनी थी, की ज्यादा लिख ना पाई खामोश थी जुबाँ और आँखें पढ़ ना पाई मोहब्बत के काबिल हम अभी कहा हुए दोस्ती और प्यार में फ़र्क पहचान ना पाई रूठना मनाना हर दिन का सिलसिला हो गया वक़्त की बदलती करवट मैं नादाँ समझ ना पाई इश्क़ का एक रूख कुछ एेसा भी देखा मैंने मोहब्बत क्या नफ़रत भी खास तुझ ही से पाई तेरे प्यार में खास एक दिन एेसा भी था तु था करीब और खुद को मैं अजनबी पाई तेरा आना दिल को कुछ एेसा लगा था हर धूप की छाँव तुझ ही में समाई