White मेरे खयाल जानिब ए गर्दिश बदल गए उनके खयाल रंग ए ज़माने में ढल गए ऐसा लगा की जैसे क़फ़स में थे जी रहे हमने की ढीली बाहें तो बाहर निकल गए उसकी गली से मैयतें आशिक की जा रही जिसकी गली में दिल के सभी ख्वाब जल गए तुमने नहीं है देखा वो भींगा हुआ बदन चिकनी कमर पे सारे ही लस्कर फिसल गए मां की तरह ही उसने था सर गोद में रखा माथा जो चूम बैठी तो बच्चे बहल गए अब आशिकी में जीत से तौबा करेंगे हम निर्भय बुलंदियों के सभी सूर्य ढल गए निर्भय चौहान² ©निर्भय चौहान शायरी दर्द शायरी हिंदी शायरी शायरी हिंदी में 'दर्द भरी शायरी' कवि आलोक मिश्र "दीपक" नीर