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तुम - मेरी चाहत तुम बसते हो दिल में मेरे मुझसे अ

तुम - मेरी चाहत

तुम बसते हो दिल में मेरे 
मुझसे अलग तुम हो सकते नहीं 
तुम्हारे होने से ही दमकते हैं हम 
फ़िर बाहरी चमक का करना क्या?

तुम्हारी बाहें ही प्रारब्ध हैं मेरा 
इनमें ही अब जीवन लगता है सुनहरा 
तुम्हारे आलिंगन में जी उठते हैं हम 
जीने की कोई और वज़ह का करना क्या?

मैं हूँ दिल तो तुम हो धड़कन 
तुमसे ही साँसे आती जाती हैं 
नस नस में बहता है प्यार तुम्हारा 
तुम बिन जीना मुमकिन होगा क्या?

तुम ही हो मेरी चाहत प्रिय 
हम भी बन गए हैं ज़रूरत तुम्हारी 
जब इतना है अटूट रिश्ता हमारा 
तो रब से और मांगना क्या?

©Poonam Suyal
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