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मानव शरीर भारतीय पौराणिक धर्म ग्रंथ में मनुष्य के

मानव शरीर भारतीय पौराणिक धर्म ग्रंथ में मनुष्य के चार पुरुषार्थ का वर्णन किया गया है धर्म अर्थ काम और मोक्ष यह चारों पुरुषार्थ शरीर के माध्यम से ही किए जाते हैं अर्थात बिना मानव तन के इन चारों पुरुषार्थ का प्राप्ति होना संभव नहीं है 8400000 प्रकार के जीवन में मनुष्य का शरीर ही सर्वश्रेष्ठ है हम जानते हैं कि यहां ब्रह्मांड पंचतत्व से बना है ठीक वैसे ही हमारे शरीर का निर्माण भी इन्हीं पंचतत्व से हुआ है यह पांच तत्व पृथ्वी जल वायु अग्नि और आकाश मनुष्य के मरने के बाद शरीर इन्हीं पांच तत्व में विलीन हो जाता है कहते हैं कि मानव तन बड़े भाग्य से मिलता है अंतरिक्ष एक शब्द प्रयोग करके जीवन में सार्थकता बनाया जा सकता है यह संसार में हर वस्तु का कोई ना कोई उपयोग या दुरुपयोग होता है यही बात मानव शरीर पर भी लागू होती है जीवन में मनुष्य का शरीर ही है जो कर्म करने के साथ उसके फल भी भोक्ता है वही पशु पक्षी कर्म तो करते हैं किंतु मनुष्य की तरह फल नहीं भोंकते मानव तनक जैसा कार्य करता है वैसा ही फल की प्राप्ति होती है महाकवि तुलसीदास ने भी कहा है कि बड़े भाग्य मानुष तन पावा सुर दुर्लभ सब ग्रंथन गावा इस सृष्टि पर मनुष्य का तन बड़े से सौभाग्य से मिलता है और यह मनुष्य तन देवताओं को भी प्राप्त नहीं हो पाता आज हम अपने आचार विचार के साथ-साथ अपने शरीर को भी सुरक्षित करें एक स्वस्थ शरीर द्वारा ही मनुष्य अपने सारे कार्य संपन्न कर सकता है मानव शरीर को मंदिर की संज्ञा दी गई है विद्यमान लोग इसके मंदिर की भांति कोई स्वच्छ रखने का प्रमाण देते हुए आए हैं हमारे सभी धार्मिक कार्य बिना शरीर के संभव नहीं है हमें अपने शरीर की महत्ता को समझना होगा जहां तक संभव हो हमें अपने शरीर के पूर्व कार जैसे करने में भी लगना चाहिए जब तन मन आत्मा सत्कार में आदि का उचित समय से होगा तभी मनुष्य पूर्णता को प्राप्त कर सकेगा

©Ek villain #manav_aman 

#peace
मानव शरीर भारतीय पौराणिक धर्म ग्रंथ में मनुष्य के चार पुरुषार्थ का वर्णन किया गया है धर्म अर्थ काम और मोक्ष यह चारों पुरुषार्थ शरीर के माध्यम से ही किए जाते हैं अर्थात बिना मानव तन के इन चारों पुरुषार्थ का प्राप्ति होना संभव नहीं है 8400000 प्रकार के जीवन में मनुष्य का शरीर ही सर्वश्रेष्ठ है हम जानते हैं कि यहां ब्रह्मांड पंचतत्व से बना है ठीक वैसे ही हमारे शरीर का निर्माण भी इन्हीं पंचतत्व से हुआ है यह पांच तत्व पृथ्वी जल वायु अग्नि और आकाश मनुष्य के मरने के बाद शरीर इन्हीं पांच तत्व में विलीन हो जाता है कहते हैं कि मानव तन बड़े भाग्य से मिलता है अंतरिक्ष एक शब्द प्रयोग करके जीवन में सार्थकता बनाया जा सकता है यह संसार में हर वस्तु का कोई ना कोई उपयोग या दुरुपयोग होता है यही बात मानव शरीर पर भी लागू होती है जीवन में मनुष्य का शरीर ही है जो कर्म करने के साथ उसके फल भी भोक्ता है वही पशु पक्षी कर्म तो करते हैं किंतु मनुष्य की तरह फल नहीं भोंकते मानव तनक जैसा कार्य करता है वैसा ही फल की प्राप्ति होती है महाकवि तुलसीदास ने भी कहा है कि बड़े भाग्य मानुष तन पावा सुर दुर्लभ सब ग्रंथन गावा इस सृष्टि पर मनुष्य का तन बड़े से सौभाग्य से मिलता है और यह मनुष्य तन देवताओं को भी प्राप्त नहीं हो पाता आज हम अपने आचार विचार के साथ-साथ अपने शरीर को भी सुरक्षित करें एक स्वस्थ शरीर द्वारा ही मनुष्य अपने सारे कार्य संपन्न कर सकता है मानव शरीर को मंदिर की संज्ञा दी गई है विद्यमान लोग इसके मंदिर की भांति कोई स्वच्छ रखने का प्रमाण देते हुए आए हैं हमारे सभी धार्मिक कार्य बिना शरीर के संभव नहीं है हमें अपने शरीर की महत्ता को समझना होगा जहां तक संभव हो हमें अपने शरीर के पूर्व कार जैसे करने में भी लगना चाहिए जब तन मन आत्मा सत्कार में आदि का उचित समय से होगा तभी मनुष्य पूर्णता को प्राप्त कर सकेगा

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