माँ के आंचल की गुड़िया, पिता की प्यारी वो मुनिया, ब्याह के बंधन में ऐसी बंधी, मायके को छोड़ ससुराल चली l रोए घर का कोना - कोना, दादी प्यारी भाई और बहना, है रीत चली कैसी ये पुरानी, सदियों से है सबको निभानी l ग़म और खुशी का मेला है, जुदाई और मिलन की बेला है, पिता की ऊंगली पकड़ चली थी जो, आज गले लग सिसक सिसक कर रोती वो l ©Dr. SONI(PROFESSOR) Priya dubey