चिठ्ठियाँ खो गई हैं, हम डिजिटल हो गए हैं। चिठ्ठियों में होता था फिक्र और जिक्र घर के हर छोटे बड़े सदस्य का पूछते थे और बताते थे खेत-खलिहान, पशु-पक्षियों के बारें में हर छोटी बातों को हँसते और रुलाते थे अड़ोस-पड़ोस के बातों से पर जब से डिजिटल हो गए हैं सब कुछ खोने लगा है एकाकी होने लगें हैं बातें तो बहुत होती है पर जिक्र फिक्र अपनापन खतम होने लगा है एक तलाश करते हैं अपनापन पाने की पर तलाश ही रह जाती है। चिठ्ठियाँ खो गई हैं, हम डिजिटल हो गए हैं। #चिठ्ठी