कश्ती का मुसाफ़िर हूँ उस पार उतरना है, मल्लाह के हाथों में जीना और मरना है । जीना है समंदर के सीने से लिपट जाना, साहिल की तरफ बढ़ना जीना नहीं मरना है । घर छोड़ के जाना तुम गर छोड़ दे घर तुमको, तारों का निकलना ही रातों का सँवरना है । महबूब के चेहरे में है भोलापन कितना, बस आँख में बस जाऊँ मेरा यही सपना है । घर दुनिया नहीं मेरी, दुनिया है घर मेरा, हद-बेहद दोनों के तूफ़ाँ से गुजरना है । दिल की तुझे कह डालूँ, फिर तेरी सुनूँ तुझसे, राजेश रिषि होकर हमको क्या करना है । © राजेश चड्ढा Happy Birthday Rajesh Chaddha Ji