उम्र भर चाहा के ज़मीन -ओ-आसमान हमारा होता काश कहीं तो ख्वाहिशों का भी कोई किनारा होता यह सोच के उस मुसाफिर को रोका ही नहीं दूर जाता ही क्यों अगर वो हमारा होता उम्र भर चाहा के ज़मीन -ओ-आसमान हमारा होता काश कहीं तो ख्वाहिशों का भी कोई किनारा होता यह सोच के उस मुसाफिर को रोका ही नहीं दूर जाता ही क्यों अगर वो हमारा होता