थोड़ा सनकी है वो,पर मन की पक्की है वो।। थोड़ा घमण्ड है उसको,पर हो भी क्यो न है एक दोस्त उसका मुझ जैसा, हर वक्त चिढ़ाने वाला। थोड़ा वो इतरा कर चलती है, जुल्फों को बिखरा कर चलती है। चारो ओर अपने हुस्न की बिजली गिराती चलती है। थोड़ा सनकी है वो,पर मन की पक्की है वो।। बात बात पर रूठा करती है वो, पर छड़ भर में मान जाया करती है। थोड़ी नकचढ़ी है वो,पर क्या करूँ मैं जैसी भी है पर मेरे जिंदगी की एक कड़ी है वो। थोड़ा सनकी है वो,पर मन की पक्की है वो।। थोड़ा सनकी है वो,पर मन की पक्की है वो।।