इन दिनों में गंज तत्वों का शिकार हो रहा है इमानदारी से तो हो रहा है हूं कहकर भी मैं अपने इस हताशा को जीतने की कोशिश कर रहा हूं जो बालों के लगातार बढ़ते देख पैदा हुई है सच्ची बात यह है कि सिरका वैभव कमोबेश लूट ही चुका है पूरी शीशे क्षेत्र में इतना ही बाल बचे हैं जितने से राजनीति में विचारधाराओं के प्रति प्रतिबंध लगे जिस तरह इमानदार लोग से लोकतंत्र की नार आगरा में कायम ठीक उसी से मन तेवर बची दो हुई चार जुल्फों के दम पर खड़ा बता रहे हैं इस इमारत बुलंद थी आदमी अपने दिल को बहलाने के लिए क्या-क्या नहीं करता जवानी के जिन दिनों में मेरे सिर पर लंबी और घनी जुल्फें हुआ करती थी मैं उन्हीं के सवारने में घंटों गुजार देता था वह दिन बेरोजगारी के थे लेकिन किसी ना किसी मुझे यह बात नहीं था कि बेरोजगारी बहुत खतरनाक होती है इसलिए मैंने नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षा देता था और पढ़ाई के बाद के समय में अपनी जुल्फें सवाल करता था जिस से मिलने जाने के लिए ना जाने कितने महीनों तक अपनी जुल्फों को संवारा वही प्रेमिका तो कई सालों पहले किसी और के लिए शैंपू खरीद के ले उसकी का आंगन बन गई अब उसकी याद में जुल्फें भी किनारे कर लिया करें आदमी को यह बात बहुत आसानी से समझ नहीं आती की दोस्ती के दावे और जुल्फों के साए कभी भी साथ छोड़ सकते हैं ©Ek villain #मैं गंज तत्व और सुख #adventure