अब सब अपने बेगाने हुए हमसर अब अपने भी सहर अनजाने हुए हमसर अब जो खुद मुसाफिर बन गए है हम हम तो अपने आप से अनजाने हुए है हमसर। छोड़ कर अपना शहर भला कौन सुकून से रहता है दूसरे सहर में हम खुद ही दर बदर के मारे हुए हमसर । छूटा जो अपना गाव तो खाक कुछ अच्छा लगे कोई अपना मिले इस बेगाने शहर में तो ना अच्छा लगे । और अब मा के हाथो का लुकमा बहोत याद आयेंगे भूख भी ना होने से मा जो जबरन खिलाती थी। ओ मा के हाथो का निवाला अब बहोत सताएंगे और मा ने ये कह कर ,कर दिया घर से रुखसत की तुझको मेरी सारी दुआ लगे । तू जहा भी रहे सलामत रहे तू हसता रहे मुस्कुराता रहे तुझे ना किसी का बद्दुआ लगे । © Hamsar husain #EveningBlush