Nojoto: Largest Storytelling Platform

. Caption ग्रेटर नोएडा आए हुए मुझे तकरीबन डेढ़ साल

. Caption ग्रेटर नोएडा आए हुए मुझे तकरीबन डेढ़ साल हो गए हैं, मगर दिल्ली घूमने के नाम पर मैंने सिर्फ लाल किला ही देखा है। शनिवार और रविवार को चादर तान के दिन भर सोना यही आदत रही है मेरी, मगर न जाने क्यों आज दिल ने कहा कुछ नया करते हैं,  कुछ अलग करते हैं तो मैं अपना कैमरा लेकर निकल पड़ा दिल्ली भ्रमण को।  मैंने घूमने के लिए नेहरू प्लेस चुना क्योंकि मुझे वहां कुछ काम भी था, तकरीबन 9:00 बजे तक मैं बोटेनिकल मेट्रो स्टेशन पहुंच गया था। अब जवां दिल है तो थोड़ा फिसल हीं जाता है!  स्टेशन पर भारी मात्रा में खूबसूरती थी,  खूबसूरत लड़कियों की खूबसूरती का दीदार करते हुए मैं द्वारका जाने वाली मेट्रो में चढ़ गया। आज मेरा भाग्य शायद मुझ पर कुछ ज्यादा हीं मेहरबान था। एक खूबसूरत मोहतरमा के बगल में मुझे सीट मिल गई पूरा सफर आनंदमय रहा।

मंडी हाउस मेट्रो स्टेशन पर ट्रेन एक्सचेंज करने के बाद मैं नेहरू प्लेस पहुंचा। वहां विदेशी पर्यटकों को भारतीय पारंपरिक पोशाकों में देखकर बहुत सुखद अनुभव हुआ। अपने भारतीय होने पर बहुत गर्व महसूस हो रहा था।  सारी महिलाएं और लड़कियां भारत के पारंपरिक महिला पोशाक समीज सलवार में थे। जब भी कोई विदेशी आपके देश की सभ्यता का अनुसरण करता है तो अंदर से एक गर्व वाली फीलिंग होती है। मैं यह गर्व वाली फीलिंग लेकर नेहरु प्लेस मार्केट की तरफ बढ़ा कुछ खरीदारी की।

जब वापस लौटते वक्त मैं नेहरू प्लेस मेट्रो स्टेशन पहुंचा तो मैं काफी थक चुका था सामने बादाम वाले से मैंने बदाम लिया और इस का मजा लेते हुए कुछ देर आराम करने के लिए बैठ गया। मेरी नजर करीब 6 साल की लड़की पर पड़ी जो विदेशी पर्यटकों से कुछ पैसे देने की जिद कर रही थी, सीधी भाषा में कहूं तो भीख मांग रही थी और वे लोग बहुत असहज दिख रहे थे ।मुझसे रहा नहीं गया मैं उनके पास गया,  उस बच्ची को कुछ पैसे दिए और जो बादाम मेरे हाथ में था वह उसे दिया और कहा की अब वह उनसे ना मांगे। बच्ची के जाने के बाद वे लोग काफी संतुष्ट दिखे और उन्होंने मुझे थैंक्यू कहां।  मैं कुछ कहता उससे पहले ही मुझे चारों तरफ से छोटे-छोटे बच्चों ने जो मैले कुचले कपड़ों में लिपटे हुए थे, मुझसे पैसे देने की जिद करने लगे। शायद उन्होंने ने मुझे उस बच्ची को पैसे देते हुए देख लिया था अब मैं ना तो उन सबको पैसे दे सकता था और ना ही मेरे कहने पर वह मेरी कुछ सुनने को तैयार थे।  मेरे लिए यह बहुत हीं असहज स्थिति थी।  इन बच्चों को एक बार देखने के बाद अगर आपके पास पैसे हैं और होते हुए भी आप उन्हें नहीं देते तो आपको मनुष्य कहलाने का कोई हक नहीं है। उनके बदन पर कपड़े के नाम पर सिर्फ मैली कुचली चादर नुमा चीज थी मुझसे जितना हो सकता था मैंने देने की कोशिश की,  फिर भी सबको नहीं दे सका जैसे-तैसे पीछा छुड़ाकर स्टेशन की ओर भागा।  सच कहूं ऐसा करते वक्त मुझे बहुत बात आत्मग्लानि हो रही थी।

मैं स्वयं हर बात के लिए सरकार को कुसूरवार  ठहराना हराना उचित नहीं समझता जैसे स्वच्छता को लेकर क्योंकि आसपास साफ सफाई रखना सिर्फ सरकार की हीं जिम्मेदारी नहीं हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी है।  मगर भीख मांगते इन छोटे-छोटे बच्चों को देखें इसमें किसका कसूर है सरकार का या फिर इन बच्चों का ?  क्या इनका कसूर यह है कि इन्होंने ऐसे परिवार में जन्म लिया,जहाँ ना तो इनका पेट भरा जा सकता है और नाही उन्हें  शिक्षा दिलाई जा सकती है।  जहां ना तो  इनके वर्तमान का ठिकाना है ना ही भविष्य का। ये किसकी जिम्मेदारी बनती है कि वह इन बच्चों को उनका हक दिलाएं ?  इन्हें पर्याप्त रूप से भी भोजन मिले शिक्षा मिले रोजगार मिले।  यह जिम्मेदारी किसकी है ? कौन उठाएगा ? सच कहूं तो अगर यह मेरे महान भारत का दूसरा चेहरा है तो मुझे अपने भारत के इस चेहरे पर कतई गर्व नहीं है।
. Caption ग्रेटर नोएडा आए हुए मुझे तकरीबन डेढ़ साल हो गए हैं, मगर दिल्ली घूमने के नाम पर मैंने सिर्फ लाल किला ही देखा है। शनिवार और रविवार को चादर तान के दिन भर सोना यही आदत रही है मेरी, मगर न जाने क्यों आज दिल ने कहा कुछ नया करते हैं,  कुछ अलग करते हैं तो मैं अपना कैमरा लेकर निकल पड़ा दिल्ली भ्रमण को।  मैंने घूमने के लिए नेहरू प्लेस चुना क्योंकि मुझे वहां कुछ काम भी था, तकरीबन 9:00 बजे तक मैं बोटेनिकल मेट्रो स्टेशन पहुंच गया था। अब जवां दिल है तो थोड़ा फिसल हीं जाता है!  स्टेशन पर भारी मात्रा में खूबसूरती थी,  खूबसूरत लड़कियों की खूबसूरती का दीदार करते हुए मैं द्वारका जाने वाली मेट्रो में चढ़ गया। आज मेरा भाग्य शायद मुझ पर कुछ ज्यादा हीं मेहरबान था। एक खूबसूरत मोहतरमा के बगल में मुझे सीट मिल गई पूरा सफर आनंदमय रहा।

मंडी हाउस मेट्रो स्टेशन पर ट्रेन एक्सचेंज करने के बाद मैं नेहरू प्लेस पहुंचा। वहां विदेशी पर्यटकों को भारतीय पारंपरिक पोशाकों में देखकर बहुत सुखद अनुभव हुआ। अपने भारतीय होने पर बहुत गर्व महसूस हो रहा था।  सारी महिलाएं और लड़कियां भारत के पारंपरिक महिला पोशाक समीज सलवार में थे। जब भी कोई विदेशी आपके देश की सभ्यता का अनुसरण करता है तो अंदर से एक गर्व वाली फीलिंग होती है। मैं यह गर्व वाली फीलिंग लेकर नेहरु प्लेस मार्केट की तरफ बढ़ा कुछ खरीदारी की।

जब वापस लौटते वक्त मैं नेहरू प्लेस मेट्रो स्टेशन पहुंचा तो मैं काफी थक चुका था सामने बादाम वाले से मैंने बदाम लिया और इस का मजा लेते हुए कुछ देर आराम करने के लिए बैठ गया। मेरी नजर करीब 6 साल की लड़की पर पड़ी जो विदेशी पर्यटकों से कुछ पैसे देने की जिद कर रही थी, सीधी भाषा में कहूं तो भीख मांग रही थी और वे लोग बहुत असहज दिख रहे थे ।मुझसे रहा नहीं गया मैं उनके पास गया,  उस बच्ची को कुछ पैसे दिए और जो बादाम मेरे हाथ में था वह उसे दिया और कहा की अब वह उनसे ना मांगे। बच्ची के जाने के बाद वे लोग काफी संतुष्ट दिखे और उन्होंने मुझे थैंक्यू कहां।  मैं कुछ कहता उससे पहले ही मुझे चारों तरफ से छोटे-छोटे बच्चों ने जो मैले कुचले कपड़ों में लिपटे हुए थे, मुझसे पैसे देने की जिद करने लगे। शायद उन्होंने ने मुझे उस बच्ची को पैसे देते हुए देख लिया था अब मैं ना तो उन सबको पैसे दे सकता था और ना ही मेरे कहने पर वह मेरी कुछ सुनने को तैयार थे।  मेरे लिए यह बहुत हीं असहज स्थिति थी।  इन बच्चों को एक बार देखने के बाद अगर आपके पास पैसे हैं और होते हुए भी आप उन्हें नहीं देते तो आपको मनुष्य कहलाने का कोई हक नहीं है। उनके बदन पर कपड़े के नाम पर सिर्फ मैली कुचली चादर नुमा चीज थी मुझसे जितना हो सकता था मैंने देने की कोशिश की,  फिर भी सबको नहीं दे सका जैसे-तैसे पीछा छुड़ाकर स्टेशन की ओर भागा।  सच कहूं ऐसा करते वक्त मुझे बहुत बात आत्मग्लानि हो रही थी।

मैं स्वयं हर बात के लिए सरकार को कुसूरवार  ठहराना हराना उचित नहीं समझता जैसे स्वच्छता को लेकर क्योंकि आसपास साफ सफाई रखना सिर्फ सरकार की हीं जिम्मेदारी नहीं हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी है।  मगर भीख मांगते इन छोटे-छोटे बच्चों को देखें इसमें किसका कसूर है सरकार का या फिर इन बच्चों का ?  क्या इनका कसूर यह है कि इन्होंने ऐसे परिवार में जन्म लिया,जहाँ ना तो इनका पेट भरा जा सकता है और नाही उन्हें  शिक्षा दिलाई जा सकती है।  जहां ना तो  इनके वर्तमान का ठिकाना है ना ही भविष्य का। ये किसकी जिम्मेदारी बनती है कि वह इन बच्चों को उनका हक दिलाएं ?  इन्हें पर्याप्त रूप से भी भोजन मिले शिक्षा मिले रोजगार मिले।  यह जिम्मेदारी किसकी है ? कौन उठाएगा ? सच कहूं तो अगर यह मेरे महान भारत का दूसरा चेहरा है तो मुझे अपने भारत के इस चेहरे पर कतई गर्व नहीं है।