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आमंत्रण ना बातों की मर्यादा है, ना शब्दों में वो

आमंत्रण

ना बातों की मर्यादा है,
ना शब्दों में वो वंदन है।
शेषनाग के फन से देखो
विषाक्त हुआ अब चंदन है।
प्रियवर तुम ना आ जाना,
ये जलसों का आमंत्रण है।
रिस्तो का क्षय हुआ है,
ये कैसा ढोंग पर्दशन है।
आमंत्रण को ना करो कलंकित
अपनो को ना भुलाओ तुम
गर अपमान ही करना था तो,
बेहतर है ना बुलाओ तुम।।

  ~ अंकित दुबे #
आमंत्रण

ना बातों की मर्यादा है,
ना शब्दों में वो वंदन है।
शेषनाग के फन से देखो
विषाक्त हुआ अब चंदन है।
प्रियवर तुम ना आ जाना,
ये जलसों का आमंत्रण है।
रिस्तो का क्षय हुआ है,
ये कैसा ढोंग पर्दशन है।
आमंत्रण को ना करो कलंकित
अपनो को ना भुलाओ तुम
गर अपमान ही करना था तो,
बेहतर है ना बुलाओ तुम।।

  ~ अंकित दुबे #