रिश्तों से कभी बनता था घर,अब मतलब से बसर होता है। रहते थे मिलकर ही साथ जो, अब तो नफरत असर होता है। हँसना-खिलखिलाना भूल गए,आज पैसे की कदर है यहाँ। मापकर ही बोलते हैं लोग,जब होती है गदर होती है। सिमट गए हैं सब हाशिए में,मिल अपनों से घुटन होती है। अब भरोसा का कत्ल हो रहा,यहाँ केवल टूटन होती है। भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏🌹🙏 ©Bharat Bhushan pathak #रिश्ते#मतलबीदुनिया#टूटन