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बना गुलाब तो काँटे चुभा गया इक शख़्स हुआ चराग़ त

बना गुलाब तो काँटे चुभा गया इक शख़्स 

हुआ चराग़ तो घर ही जला गया इक शख़्स 

तमाम रंग मिरे और सारे ख़्वाब मिरे 

फ़साना थे कि फ़साना बना गया इक शख़्स 

मैं किस हवा में उड़ूँ किस फ़ज़ा में लहराऊँ 

दुखों के जाल हर इक सू बिछा गया इक शख़्स 

पलट सकूँ ही न आगे ही बढ़ सकूँ जिस पर 

मुझे ये कौन से रस्ते लगा गया इक शख़्स 

मोहब्बतें भी अजब उस की नफ़रतें भी कमाल 

मिरी ही तरह का मुझ में समा गया इक शख़्स 

मोहब्बतों ने किसी की भुला रखा था उसे 

मिले वो ज़ख़्म कि फिर याद आ गया इक शख़्स 

खुला ये राज़ कि आईना-ख़ाना है दुनिया 

और उस में मुझ को तमाशा बना गया इक शख़्स

©सत्यमेव जयते
  #इक शख़्स
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#इक शख़्स

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