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My dear poem कभी धागे टूट जाते हैं। कभी सपने टूट ज

My dear poem कभी धागे टूट जाते हैं।
कभी सपने टूट जाते हैं। 

कारवां चलता रहता है,  
मुसाफ़िर छूट जाते हैं।
 
वो कहते हैं बा-अदब,
हम काफ़िर,लुट जाते हैं।

घरौन्दे आखिर मिट्टी के,
ये एक दिन फुट जाते हैं।

आज के दौर में "विशेष", 
अजीब से अपने नाते हैं।

किस्मत साथ देती है,
तो अपने रूठ जाते हैं। #Poetry

कभी धागे टूट जाते हैं।
कभी सपने टूट जाते हैं। 

कारवां चलता रहता है,  
मुसाफ़िर छूट जाते हैं।
My dear poem कभी धागे टूट जाते हैं।
कभी सपने टूट जाते हैं। 

कारवां चलता रहता है,  
मुसाफ़िर छूट जाते हैं।
 
वो कहते हैं बा-अदब,
हम काफ़िर,लुट जाते हैं।

घरौन्दे आखिर मिट्टी के,
ये एक दिन फुट जाते हैं।

आज के दौर में "विशेष", 
अजीब से अपने नाते हैं।

किस्मत साथ देती है,
तो अपने रूठ जाते हैं। #Poetry

कभी धागे टूट जाते हैं।
कभी सपने टूट जाते हैं। 

कारवां चलता रहता है,  
मुसाफ़िर छूट जाते हैं।