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थका हूं मैं, हारा तो नहीं, थम सा गया, मुड़ा तो नही

थका हूं मैं, हारा तो नहीं, थम सा गया, मुड़ा तो नहीं, अभी हूं सफ़र में आबाद, खफा तो नहीं, जमाने की अंदरूनी शिकायतों से, कभी मैं घबराया तो नहीं, तू ना बैठे थक कर राह के मुसाफिर, मंजिल अब दूर कहां। राह हे हटके संभल कर मुसाफिर, ना डगमगाने दे पावों को तू अपने, ना बिखरने दे हौसलों को अपने, तू ना बैठ थक कर रहा के राहगीर, मंजिल अब दूर कहां। मंज़िल की राहों में बसेरा बनाया है मैंने, सपनों की दुनिया सजाई है मैंने, अपनों से दूरी बनाई है मैंने, होसलो को अपने नवाजा है मैंने, तू ना बैठ थक कर रहा के राहगीर, मंजिल अब दूर कहां। विश्वास से ताकत बनाई है मैंने, परिंदों से बाज़ी लगाई है मैंने, चांद को मंजिल बनाया है मैंने, सितारों से राह रचाई है मैंने, तू ना बैठ थक कर रहा के मुसाफिर, मंजिल अब दूर कहां।

©Raju gujarati
  "मंजिल अब दूर कहां"

"मंजिल अब दूर कहां" #कविता

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