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मगरूर बहुत है ये अपने में, मेरे आने ‌ से मुॅंह ब

मगरूर बहुत है ये अपने में, मेरे  आने ‌ से  मुॅंह बनाती हैं,
मुझे तो गैर करार किया है, तेरे इश्क पर हक़ बताती हैं।

शुक्र ख़ुदा का गलियाॅं हैं,तेरी महक को अपना बताती है,
मुझ पे इल्ज़ाम लगा ये तो,रोज़ शामें तेरे संग बिताती हैं।

राहों में मैंने बिछाई कलियाॅं,उन्हें अपने गुलाब कहाती हैं,
मुझ इश्क की साथी पे, बेवफाई का इल्ज़ाम लगाती हैं।

मैं गुज़रूॅं जो तेरे मकां जानिब ये मुझे रास्ता भटकाती हैं,
कोई बुराई तो नहीं मुझमें, ये मुझे गलत क्यों ठहराती हैं?

मुझसे ज्यादा इन्हें इश्क है, ख़ुद को महबूबा कहाती हैं,
जब कभी थम लूॅं तेरा हाथ तो पूरे मोहल्ले को बताती हैं।

'भाग्य' तेरी गलियों को मैं प्यारी नहीं मुझे दूर भगाती है,
तेरी बेरुखी मंज़ूर थी,इनकी दखलअंदाज़ी नहीं भाती हैं। ♥️ Challenge-881 #collabwithकोराकाग़ज़

❤️मगरूर बहुत है ये अपने में, मेरे  आने ‌ से  मुॅंह बनाती हैं,
मुझे तो गैर करार किया है, तेरे इश्क पर हक़ बताती हैं।

शुक्र ख़ुदा का गलियाॅं हैं,तेरी महक को अपना बताती है,
मुझ पे इल्ज़ाम लगा ये तो,रोज़ शामें तेरे संग बिताती हैं।
मगरूर बहुत है ये अपने में, मेरे  आने ‌ से  मुॅंह बनाती हैं,
मुझे तो गैर करार किया है, तेरे इश्क पर हक़ बताती हैं।

शुक्र ख़ुदा का गलियाॅं हैं,तेरी महक को अपना बताती है,
मुझ पे इल्ज़ाम लगा ये तो,रोज़ शामें तेरे संग बिताती हैं।

राहों में मैंने बिछाई कलियाॅं,उन्हें अपने गुलाब कहाती हैं,
मुझ इश्क की साथी पे, बेवफाई का इल्ज़ाम लगाती हैं।

मैं गुज़रूॅं जो तेरे मकां जानिब ये मुझे रास्ता भटकाती हैं,
कोई बुराई तो नहीं मुझमें, ये मुझे गलत क्यों ठहराती हैं?

मुझसे ज्यादा इन्हें इश्क है, ख़ुद को महबूबा कहाती हैं,
जब कभी थम लूॅं तेरा हाथ तो पूरे मोहल्ले को बताती हैं।

'भाग्य' तेरी गलियों को मैं प्यारी नहीं मुझे दूर भगाती है,
तेरी बेरुखी मंज़ूर थी,इनकी दखलअंदाज़ी नहीं भाती हैं। ♥️ Challenge-881 #collabwithकोराकाग़ज़

❤️मगरूर बहुत है ये अपने में, मेरे  आने ‌ से  मुॅंह बनाती हैं,
मुझे तो गैर करार किया है, तेरे इश्क पर हक़ बताती हैं।

शुक्र ख़ुदा का गलियाॅं हैं,तेरी महक को अपना बताती है,
मुझ पे इल्ज़ाम लगा ये तो,रोज़ शामें तेरे संग बिताती हैं।