जो लिखा था काग़ज़ पर,अब भूल चुके हैं बस दिल पर उकेरी यादें, संभाल रखी हैं धूमिल नज़रों से अब कुछ नज़र नहीं आता बस उसकी तस्वीर दिल में उतार रखी है संभाल रखी है हर उम्मीद जो उससे थी मैं खुद ही अब उन्हें पूरा करना चाहता हूं बेचैनियां , शिकायतें सारी यहीं छोड़ कर जिंदगी उसकी खुशी में पिरोना चाहता हूं कोई रंज नहीं है उससे या फिर जमाने से सबकी कही अनकही सौ मजबूरियां हैं कर सकता हूं अब कोई भी सफर तन्हा मेरे हिस्से का आसमां है,हासिल दूरियां हैं जो लिखा था काग़ज़ पर,सब भूल चुके हैं बस दिल पर उकेरी यादें, संभाल रखी हैं धूमिल नज़रों से अब कुछ नज़र नहीं आता बस उसकी तस्वीर दिल में उतार रखी है संभाल रखी है हर उम्मीद जो उससे थी