ये मोहब्बत है पनाह में नहीं रहती बहुत देर ख़ुश्बू गुलाब में नहीं रहती बिखर जाती हूँ कागज पर बन के मोती मैं सियाही हूँ दवात में नहीं रहती आती है खुद मोहब्बत चलकर यहाँ तक शीरीं ज़बान किसी तलाश में नहीं रहती ज़िक्र होता है गुलशन फूल हवाओं का मगर ख़ुश्बू कभी क़िताब में नहीं रहती बिखर जाने के हुनर से है वजूद मिरा रोशनी हूँ में चिराग़ में नहीं रहती गिरते को गिराये चढ़ते को चढ़ाये जानूं हूँ दुनियाँ हिसाब में नहीं रहती आँख खुली बदले मंज़र तो पाया ‘सरु’ ने हक़ीक़त की दुनियाँ ख़्वाब में नहीं रहती —JB🎙MUSIC_ 🙏good morning .🙏