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"ना मालूम तेरे मेरे दरमियाँ ये कैसा रिश्ता है"?...

"ना मालूम तेरे मेरे दरमियाँ ये कैसा रिश्ता है"?....

"पता नही हमारे दरमियाँ यह कौन सा रिश्ता है
लगता है सालों पुराना  "अधूरा"सा कोई रिश्ता है... 
तुम्हारे साथ आज कल यूँ ही हर जगह रहती हूँ मैं, 
हद से ज्यादा तुम्हें सोंचूँ यही  सोंचती हूँ मैं....
तुम्हारे तस्वीरों में मुझे अपना" साथ" दिखता हैं, 
महसूस करता है जो "मन " वही बात लिखती हूँ मैं.... 
तुम्हारी "आवाज़"सुनने को हर पल बेकरार रहती हूँ मैं, 
नही करूँगीं "याद" तुम्हें मैं  खुद से हर बार करती हूँ ..... 
नाराज़ ना होना कभी बस यही एक"गुजारिश"हैं,
महकी हुई इन साँसों साँसों से "सिफ़ारिश" है.... 
बदल जो जाए सारा "जग" पर ना बदलना तुम कभी, 
ख्वाबों के "खुशनुमा शहर" में मिलने आना तुम कभी.....

©अlpu
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