ख़ुदा का घर अनुशीर्षक में👇👇 ख़ुदा का घर कहाँ कहाँ है, ज्ञान आया तो मैंने जाना है। ख़ुदा का घर तो मेरे दिल के अंदर बसा हुआ है। जज़्बात हमारा रहे जैसा है ख़ुदा अपना घर दिखावे वैसा है। कभी मंदिर तो कभी मस्जिद, तो कभी गिरजाघर कभी गुरुद्वारा हुआ है। ढूंँढ़ रहे जिसके घर को उसको अपनी इबादत माना है। कस्तूरी मृग जंगल में भटक ढूंँढ़ रहा अपनी कस्तूरी जो अंदर ही बसा हुआ है। दिल भी भटक इधर उधर ख़ुदा का घर ढूंँढ़ ज़िंदगी से निकल आना है। दिल में बसे ख़ुदा का घर ने हमारा कबूल किया हर दुआ है। किसी की खुशी और मुस्कुराहट की वजह बनना है। समझो ख़ुदा का खुश होकर कर उनके दिल को छुआ है। अपने दिल से निकले मोहब्बत से लोगों को जीत लेना है।