क्षणभंगुर संसार में नियमित सब गतिशील है, सूरज उगे समय पर समय पर ही ढले, सब के नियम जटिल है, कोई इसकी उल्लंघन ना करें, वक्त का परिंदा रफ्तार अपनी ही लिए हुए, कभी तेज तो कभी कम पर हमेशा बढ़ता ही रहे, आगंतुक हम सब जीवन चक्र के, करम अपना निभा चले, कर्मों का होना जब लेखा-जोखा, पवित्र किताब हमारी साफ़ रहे, इतना खुद से वादा करो, साफ अपने चरित्र का हर सफा रखो, वक्त का यह परिंदा, जब रुह को हमारी ले जाएगा, खुद पर हम गर्व करें, ना मन भीतर से पछतायेगा, देव रूपी आत्मा को, खुद नमन करके, हमारे कर्मों का फल सुनाएगा। उम्र भर मिलने नहीं देती हैं, ऐसी है रंजिशें वक़्त हम से रूठ जाने की अदा तक ले जाएगा। 🎀 प्रतियोगिता संख्या- 23 🎀 शीर्षक:- "" वक़्त का ये परिंदा "" 🎀 शब्द सीमा नहीं है। 🎀 इस प्रतियोगिता में आप सभी को इस शीर्षक पर collab करना है।