KP TAILOR HD video recording HD video recording ©KP TAILOR HD रामायण कथा' की रचना भगवान वाल्मीकि जी के जीवन में घटित एक घटना से हुई, जब वह अपने शिष्य ऋषि भारद्वाज जी के साथ एक दिन गंगा नदी के पास तमसा नदी पर स्नान करने के लिए जा रहे थे तब वहां उन्होंने क्रौंच पक्षियों के एक जोड़े को प्रेम में आनंदमग्न देखा। तभी व्याध्र ने इस जोड़े में से नर क्रौंच को अपने बाण से मार गिराया। क्रौंच खून से लथपथ भूमि पर आ पड़ा और उसे मृत देखकर क्रौंची ने करुण-क्रंदन किया। क्रौंची का करुण क्रंदन सुनकर महर्षि भगवान वाल्मीकि जी का करुणापूर्ण हृदय द्रवित हो उठा और उनके मुख से अचानक यह श्लोक (अनुष्टुप छंद) फूट पड़ा : ''हे निषाद् (शिकारी)! तू भी अनन्त-काल तक प्रतिष्ठा को प्राप्त नहीं करेगा क्योंकि तूने संगिनी के प्रेम में मग्न एक क्रौंच पक्षी का वध कर दिया है।'' मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम् शाश्वती: .... जब भगवान वाल्मीकि बार-बार उस श्लोक के चिंतन में ध्यान मग्न थे, उसी समय प्रजापिता ब्रह्माजी मुनिश्रेष्ठ वाल्मीकि जी के आश्रम में आ पहुंचे। मुनिश्रेष्ठ ने उनका सत्कार अभिवादन किया तब ब्रह्मा जी ने कहा, ''हे मुनिवर! विधाता की इच्छा से ही महाशक्ति सरस्वती आपकी जिह्वा पर श्लोक बनकर प्रकट हुई हैं। इसलिए आप इसी छंद (श्लोक) में रघुवंशी श्री रामचंद्र जी के जीवन-चरित की रचना करें। संसार में जब तक इस पृथ्वी पर पहाड़ और नदियां रहेंगी तब तक यह रामायण कथा गाई और सुनाई जाएगी। ऐसा काव्य ग्रंथ न पहले कभी हुआ है और न ही आगे कभी होगा।''