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दोहा -- किरण शोभित है नूतन किरण, सदा गगन के भाल।

दोहा -- किरण

शोभित है नूतन किरण, सदा गगन के भाल।
उषा बनकर  मल्लिका, चमक  रही  है लाल।

केसर किरण उजास से, पोषित हो नव भोर।
हर्षित  हो खग  चहकते, नाच  रहे  वन मोर।

स्वर्णिम  किरणें  वैभवी, कंचन केसर भोर।
शीतल मन्द पवन चली, वसुधा के हर छोर।

आस किरण ना  छोड़ना, संकट  होगा दूर।
राम गये  वनवास  में, समय  करें  मजबूर।

छिटकी किरण मयंक से, धरा थाम ली हाथ।
नागर  लगती  चांदनी, नव  उमंग  के  साथ।

©Dr. Bhagwan Sahay Rajasthani
  सुहावनी सुबह की किरणें

सुहावनी सुबह की किरणें #कविता

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