तेरे कूचे में जो बीमार नज़र आते है मुझ को सारे ही ये फनकार नज़र आते हैं मैं तेरी सोच में निकलूं जो कभी सहरा में साथ में चलते सौ अश्ज़ार नज़र आते हैं तूने जो चूमा है इन आंखो के कशकोलों को खोटे सिक्के मुझे दीनार नज़र आते हैं वो फलक जिसमे सितारें ही जड़े रहते थे हिज्र में देखूं तो बस खार नज़र आते हैं उस के हाथो को मैं छूने से बहुत डरता हूं उसके नाखून में औजार नज़र आते हैं नींद से जगने का दिल करता नही है मेरा ख्वाब तेरे जो लगातार नज़र आते हैं जब ये जिंदा थे,दर-ओ-बाम न थे हासिल, पर दफ़न कब्रो में जमींदार नजर आते हैं इश्क से पहले सुख़न-वर लगे, सब को नीरस फिर यही लोग मज़ेदार नजर आते हैं 2122 1122 1122 22/112 अश्जार ******* पेड़ो का समूह कशकोल****** भिक्षा पात्र सुख़न-वर ***** शायर एक और शेर चढ़ रहा इश्क का ये रोग, वबा के जैसे मैं जहां देखूं तो बीमार नज़र आते हैं