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हाथ थामा था जो कल तक उन्होने, आज उसे छोड़ बैठे है

हाथ थामा था जो कल तक उन्होने, आज उसे छोड़ बैठे है 
हम ही ना जाने क्यों, उनसे वफाओं के तकाज़े किये बैठे है, 

यूँ तो तय किया है एक दायरा, उन्होने मुहब्बत में 
हम ही ना जाने क्यों, हद में रहकर बेहद किये बैठे है, 

यूँ तो अदावत भी है, तग़ाफुल भी है मुहब्बत में 
फिर वो ना जाने क्यों, हमसे बेमुरव्वत हुए बैठे है, 

जिसे समझा था ज़िंदगी भर का साथ हमने मुहब्बत में 
फिर ना जाने क्यों, वो इसे मुहब्बत में हमारी भूल बताए बैठे है। 

Afra Mahmood

©EMERGING WRITERS #afra_mahmood_poetry
#leftalone
हाथ थामा था जो कल तक उन्होने, आज उसे छोड़ बैठे है 
हम ही ना जाने क्यों, उनसे वफाओं के तकाज़े किये बैठे है, 

यूँ तो तय किया है एक दायरा, उन्होने मुहब्बत में 
हम ही ना जाने क्यों, हद में रहकर बेहद किये बैठे है, 

यूँ तो अदावत भी है, तग़ाफुल भी है मुहब्बत में 
फिर वो ना जाने क्यों, हमसे बेमुरव्वत हुए बैठे है, 

जिसे समझा था ज़िंदगी भर का साथ हमने मुहब्बत में 
फिर ना जाने क्यों, वो इसे मुहब्बत में हमारी भूल बताए बैठे है। 

Afra Mahmood

©EMERGING WRITERS #afra_mahmood_poetry
#leftalone