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मैं कवि हूँ, जब भी बिखरता हूँ वो मुझे समेट लेती

मैं कवि हूँ,

जब भी  बिखरता हूँ
वो मुझे समेट लेती है
दुनिया की भीड़ में
मेरा हाथ थाम लेती है 
मैं तो नासमझ हूँ
मुझे समझा देती है 
जब कभी रूठ जाता  हूँ
तब मुझे मना लेती है 

गहराई से सोचो
तो समझ आता है,
कि कविता स्त्रीलिंग क्यूं है। मैं कवि हूँ,

जब भी  बिखरता हूँ
वो मुझे समेट लेती है
दुनिया की भीड़ में
मेरा हाथ थाम लेती है 
मैं तो नासमझ हूँ
मुझे समझा देती है
मैं कवि हूँ,

जब भी  बिखरता हूँ
वो मुझे समेट लेती है
दुनिया की भीड़ में
मेरा हाथ थाम लेती है 
मैं तो नासमझ हूँ
मुझे समझा देती है 
जब कभी रूठ जाता  हूँ
तब मुझे मना लेती है 

गहराई से सोचो
तो समझ आता है,
कि कविता स्त्रीलिंग क्यूं है। मैं कवि हूँ,

जब भी  बिखरता हूँ
वो मुझे समेट लेती है
दुनिया की भीड़ में
मेरा हाथ थाम लेती है 
मैं तो नासमझ हूँ
मुझे समझा देती है