आंचल पल्लू कहलाता था माँ का आंचल। सबकी माँएं पहनती थीं साड़ी, बच्चा-बच्चा जानता था, पहचानता था। अब तो यह बीते समय की बात हो चली है। माँ की महिमा बढ़ाता था आंचल, गरम बरतन चूल्हे से उतारता था आंचल। संतानों के आंसू और पसीने को पोंछता था आंचल। ठंड से ही नहीं धूप और गरमी से बचाता था आंचल। बच्चों के कान साफ करता था माँ का आंचल। मुंह की भी सफाई करता था माँ का आंचल। भोजन के बाद धुले मुँह सुखाता, सुकून देता था माँ का आंचल। आंँखों का दर्द भगाता था वो गोल बना, फूंककर गर्म किया माँ के आंचल का कोना। घर के सामानों की धूल उड़ाता था, रसोई में रक्षा वस्त्र बनता था माँ का आंचल। पूजा के फूल चुन लाता था माँ का आंचल। पेड़ों के फलों को झोक लेता था, अजनबियों की नजरों को बच्चों से दूर ही रोक लेता था माँ का आंचल। कई बार तो बच्चों के लिए बैंक भी साबित होता था माँ का आंचल। शर्मीले बच्चों के मुखावरण का काम करता था माँ का आंचल। बाहर जाने में मार्गदर्शक बनता था माँ का आंचल। विकास कितना भी कर ले विज्ञान और तकनीक बना नहीं सका अब तक आंचल का विकल्प हर माँ के पास होता था जादू भरा माँ का आंचल। अब तो बीते समय की बात हो चला है माँ का आंचल।। ३६९/३६६ मां के आंचल के जादुई एहसास का लुत्फ अपने बचपन में सभी उठाते हैं और ताउम्र बचपन की यादों को जेहन में समेटे रखते हैं। #कुटुम्ब yreeta-lakra-9mba