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जब ये हवा की लहर चलती है ना ये हवा नही मानो तुम्हा

जब ये हवा की लहर चलती है ना ये हवा नही मानो तुम्हारा भेजा हुआ दूत हो। 
और मेरे कानों के पास आकर तुम्हारी और मेरी ही बातें कर रहा हो। 
और ये हवा के साथ बरसात ये भी तुम्हारी याद दिलाती है। 
बारिस की हर बूंद तुम्हारी यादें बनकर टपकती है।
 जैसे जैसे बारिस की रफ़्तार बढ़ती है
 वैसे वैसे तुम्हारी यादों की रफ़्तार भी बढ़ती हैं। 
फिर मेरी एक अलग दुनियां तुम्हारी यादों दुनियां शुरू हो जाती है। 
और ये श्याम को सूरज डूबते बख्त
 ये जो सूरज की लालिमा है ना ये मेरे मन को मोह लेती है।
 सूरज तो ऐसे ढलता है मानों हँसते हुए तुम 
अलविदा कह रही कि कल फिर मिलेंगे। और ये जो चाँद है ना ये चाँद नही मानो तुम्हारी ही तस्वीर है जिन्हें देखकर मैं रातें काटता हूँ।  
मुझें अब प्रकृति से प्रेम हैं। मैं अब तुम्हें प्रकृति में देखता हूँ।

©Rakesh Nishad
  mujhe ab prakratik se prem hai

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