#OpenPoetry मैं लम्हा-ए-इश्क नहीं करता टूटी इमारतों में "नाज़िम" फरयाद नहीं करता अकेला मुनासिफ की ज़िन्दगी ज़ि रहा हु खुशहाल हूं मुश्कुराहट में अपनी तमाम-ए-उम्र बेबफा की याद में नहीं ज़ि रहा।। लम्हा-ए-इश्क #टूटी #मुनासिफ #इमारतों #khnazim