आजक़ल एक क़ाम ये अनोख़ा खास कर रहा हू मै ख़ुद मे ख़ुद की हीं हर पल तलाश क़र रहा हू गिर चुका हूं मै मतलबीं, गिरावट के हर स्तर तक़ कुछ मत कहों, मै ख़ुद ही इसका एहसास कर रहा हूं दूसरो की शौहरते कुतरती हैं मेरी प्यारी रूह क़ो बेवज़ह,बिन क़ारण मै ख़ुद को ज़िन्दा लाश कर रहा हूं आती हैं किस्मत तों चली आ मेरी पनाहो में आज़ अभी मै मौंत से पहलें की धडी अब आभास क़र रहा हू ब़हुत कुछ ब़नाया हैं ऐ खुदा मैने तेरीं सोच सें भी परे अब़ हवस सिर चढ चुकी हैं,अब मै विनाश क़र रहा हूं बहुत ढूढ़ा पर खोज़ ना पाया मै ख़ुद को जहानों मे समझ़ आया हैं के मै माँ बाप की रूह मे निवास क़र रहा हूं गया हैं कल कोईं इस दुनियां से ख़ाली हाथ,ज़ाने कहा फिर क्यू ए भगवान मै ख़ुद को इतना ब़दहवाश कर रहा हूं सिर चढ चुका हैं अ शायरी तेरा ज़ुनून इस ‘अंकुर पर वाह वाह क़रती हैं दुनियां, चाहें मै बक़वास कर रहा हूं ©Ankur Mishra आजक़ल एक क़ाम ये अनोख़ा खास कर रहा हू #मै_ख़ुद_मे_ख़ुद_की_हीं_हर_पल_तलाश_क़र_रहा_हू गिर चुका हूं मै मतलबीं, गिरावट के हर स्तर तक़ कुछ मत कहों, मै ख़ुद ही इसका एहसास कर रहा हूं दूसरो की शौहरते कुतरती हैं मेरी प्यारी रूह क़ो बेवज़ह,बिन क़ारण मै ख़ुद को ज़िन्दा लाश कर रहा हूं