तुम्हरा कनीज़ हर बार तेरे साथ लम्हा ये यू ही गुजर जाता है कितना भी रोकू, रेत की तरह फिसल जाता है। कितनी बार तुमसे मिनाते करते है रुक जाने की... पर शायद तुम भी अपने रवैये पे हो की बिन पानी मछली की तरह, छोड़ हमे निकल जाया करती हो। कभी थोड़ी इखलाश-ए-मुश्करहट का नज़राना हमे भी दे दो ताउम्र याद रखेगें उसको, बस एक बार अपना हाथ मेरे हाथ में दे दो। तुम्हारा कनीज़ बनकर रहा लेगा यह नाज़िम बस एक बार मुस्कुराकर हाँ तो कह दो। अपने दिमाग की जिंजीरो पे यक़ीद न मत करना अगर मर गए हम कॅरोना से शायद तो इस पे भी मिलने की दरखास्त न करना। तुम शायद अनदेखा कर मेरे मोहब्बत का दरया, किसी कोने में बे-हतासा उदास लगती हो बिखरना मत तुम न बोलकर भी... तुम्हारी कसम वह शायद मैं परेशां लगता हु हर बार तेरे साथ वक्त-बेवक़्त निकल जाता है मोहब्बत तो करता हु तुझसे बे-इन्तेहा बस समय हाथ से पानी की तरह निकल जाता है।। तुम्हारा कनीज़ ....! हर बार तेरे साथ लम्हा ये यू ही गुजर जाता है कितना भी रोकू, रेत की तरह फिसल जाता है। कितनी बार तुमसे मिनाते करते है रुक जाने की... पर शायद तुम भी अपने रवैये पे हो की बिन पानी मछली की तरह, छोड़ हमे निकल जाया करती हो। कभी थोड़ी इखलाश-ए-मुश्करहट का नज़राना हमे भी दे दो