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सफर तो बदस्तूर जारी है, बस तुम्हारी यादें गुजरती क

सफर तो बदस्तूर जारी है, बस तुम्हारी यादें गुजरती क्यों नहीं,
इल्म मोहब्बत का आ गया, फिर भी मोहब्बत होती क्यों नहीं।

सफर में साथ गुजरती उस दूजी रेल सी हो गई है जिंदगी देखो,
जब साथ गुजर सकती हो तो तुम अब मेरी हो सकती क्यों नहीं।

जिस स्टेशन पर साथ छोड़ तुमने दूर जाने का इरादा किया था,
मैने जब अक्सर खुद को वहां छोड़ा है तो यादें छूटती क्यों नहीं।

तुम्हारे नाम से किसी ने किसी को पुकारा था कल शाम कहीं,
कुछ सोच वहीं रुक गया, कंबख्त वो आंखें भूलती क्यों नहीं।

सोचता हूं खुदा से शिकायत करूं ऐसी अदायगी ना अता करे,
तुम तो बेवफा हो चुकी हो, फिर तुम्हें बेवफा मानती क्यों नहीं।

हुनरपरस्ती अभी और जाने क्या गुल खिलाएगी इस कबीले में,
कई घर बर्बाद हो चुके हैं, तुम कहीं और लूटने जाती क्यों नहीं।

काश किसी कबीले में ऐसा भी तो कोई कानून होता बेवफाई का,
जब बेवफाई साबित हो गई तो उसे सज़ा मुकर्रर होती क्यों नहीं।

कितना तोड़े खुद को कितनी जिल्लतें उठाए बर्बाद होकर भी,
"किताब वाला" खुद को भूल गया बस ये दुनिया छूटती क्यों नहीं।

©Deepak Mishra "Kitab Wala"
  काश भुलाना आसान होता।
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