अंग टूटा अंग लगे अंग गिरा अंग अंग ढीला हुआ अंग फड़के अंग अंग फूले न समाये । अंगार सिर धरे अंगार बरसे अंगार उगले अंगारों पर लोटे अंगारों पर पैर रखे जाये। अंगुली पर नचाये अंगुली पकड़कर पहुंचा पकड़े आंगूठा चूमे अंगूठा दिखाये। अंगूठी का नगीना अंगूठे पर मारा अंगूर खट्टे हुये अस्थि पंजर ढीले हुये अंतड़ियाँ गले पड़ी अंधाधुंध लुटाये। अंतड़ियों में बल पड़ा अंधेरे में रखा अंधेरे घर का उजाला अंधेरे में तीर चलाये। अक्ल का दुश्मन अक्ल का पुतला अक्ल का अंधा अक्ल के पीछे लाठी लिये फिरे अक्ल चकराये।। कवि:-शैलेन्द्र सिंह यादव (राजू ),कानपुर। ©Shailendra Singh Yadav शैलेन्द्र सिंह यादव की कविता।