आशा और निराशा जीवन के दो किनारे हैं। जीवन के वास्तविक रूप को पकड़ पाना उतना ही मुश्किल है जितना पानी पर चमकती धुप को पकड़ पाना। इसमें कोई दो राह नहीं कि ज़िन्दगी अजब-गजब खेल खिलाती है। ये युधिष्ठिर के मायावी महल सी पानी में सतह और सतह पर पानी का भ्रम कराती है। भ्रम उपजाने से ये कहाँ बाज़ आती है? #कुँवर नारायण ©PULKIT JAIS "दुनिया को बड़ा रखने की कोशिश" #booklover