अपनी सोच से परे और दुनियादारी से परे... हमेशा के लिए हूँ मगर लिखने पर कोई नियम नहीं कि रोज़ लिखूँगा । अब मैं पूछता हूँ दोगे साथ मेरा । जनता हूँ कि शर्त्त नहीं है और न कोई शक है और पूरा यकीन मगर मैं अपनी ज़िंदगी के साथ तुम्हारी ज़िन्दगी के दुःख और सुख साथ रहकर एक दूसरे को समझते हुए और वक़्त समय समय पर देते हुए साथ रहना चाहता हूं बस... इसमें प्यार वाली कोई बात नहीं जो गलत एंगल पकड़ के दूसरे बैठें और जग हँसता जाए और न ही तुम उनकी बातों में आ के खुद परेशान हो जाओ और में तो ख़ैर हूँ ही बाकियों से कुछ ऐसे की घरवाले तक साथ नहीं हैं और यदि तुम ऐसे करने लगते हो की मां और भरोसा नही पेशेंस नही और स्थिरतापूर्वक धीरज खोते रहोगे तो मैं कहाँ जाऊंगा इससे तो अच्छा है या सब छोड़ दूं और या फिर मर जाऊं । तो मेरा पफैसला है, हैं बस तो दूँगा साथ, बस... सब जनता हूँ कि कितना परेशान हो, रोये हो कसमसाये से हो फिर एक दिन न बात करो तो हालात क्या होती है तुम्हारी पर मेरा भी देखो में इस महीने किस परिस्थियों से गुज़रा हूँ तो इसलिए मुझे सब पता है मैं सब देख रहा हूँ और साथ था हूँ और रहूँगा जैसा पहले था सब वैसा ही है, कुछ नहीं बदला और बिगड़ा, बिगड़ा है ये सामाजिक विचारधारा जो कि अब भी वहीं है जैसा पूर्वकाल से चला आ रहा है । एक सीधा सा महामारी क्या आ गया लोंगो को पता तो चला मगर वो सब दिखावा था । आर्थिक संकट का बहाना और जीवन सारे जग का त्राहि त्राहि हो जाना । बस इसी बात से समझ जाओ जी । OPEN FOR COLLAB✨ #ATक्यासाथ • A Challenge by Aesthetic Thoughts! ✨ Collab with your soulful words.✨