ख़ुदा भी जाने क्या क्या खेल रचाता है, जिनका साथ मुमकिन नहीं, उनसे मिलाता है.. हिफाजत में खड़ा वो हमेशा मासूम बंदो के, हमसफ़र न हो कोई,ख़ुद से ही प्यार करना सिखाता है.. मोहब्बत में मिले जमाने भर की चाहे रुसवाई.. दिलो में एक उम्मीद की ये धीमी लौ जलाता है.. ख़ुदा के कायदे के आगे बेबस सभी की होशियारी.. नेकी हो या बदी पत्ते-पत्ते का ये हिसाब लगाता है.. मिलें हैं काँटे राहों में, फूल भी मिलेंगे ये कर भरोसा, पाक दिलों के सजदे में ख़ुदा भी सिर झुकाता है.. ©Chanchal's poetry #khuda #innocent #spritual #Spritual_Gyaan #MorningMotivation