आज मोर संगवारी फेर बौराए हे, बिना चिलम पिए,वो हा मताए हे, जाऊन बोली बोल के , पीरा मा अपन महतारी ला बुलाए हे, वो ला देख पारेव संगी कैइसे छत्तीसगढ़ी बोले बर लाजात हे, जाऊन भुइया हा वोला चीर के बियाय हे, अपन महतारी के ऊपर लईका हा फेर कलंक लगाए हे, जेन वोला अपन कोरा मा खेलाय हे । ©thought meri pahchan फेर कलंक लगाए हे, #cgpoetry #Poetry #CG # #thought_meri_pahchan #mere_dilo_ki_dastan #Feeling #MyThoughts