चोरी चोरी की वो झांकियां... चोरी चोरी की वो झांकियां, झूठी छींके, झूठी खंसिया देख के सबको तुझपे नजर जाती थी शाम तेरी गली में गुजर जाती थी... देखना भी नहीं और वहीं देखना कोई कंकर उठाकर कहीं फेंकना तेरी खिड़की का पर्दा खिसकता हुआ कांच पर एक साया सरकता हुआ सांस रुक जाती थी, आंख भर जाती थी शाम तेरी गली में गुजर जाती थी... पाने वाले से बेवजह की यारियां और यारों से छुपने की दुश्वारियां डाकिये से कभी कोई खत पूछना लिख के कागज पे कुछ भी ग़लत पूछना आंख से कह दिया कुछ तो डर जाती थी शाम तेरी गली में गुजर जाती थी... ©maher singaniya चोरी चोरी की वो झाकियां...