काफी समय से सोच रहा था लिखूं आज लिख ही दिया दोस्तों जब ज़िन्दगी मौका दे कभी कदम पीछे न लो न जाने कितने ही कदम लड़खड़ा कर लौट जाते हैं मंच से पहले ही भीड़ के डर से (Read in caption) एम.एल.भारतीय ऑडिटोरियम में बिताया एक यादगार कंहू तो शायद इंसाफ नहीं होगा ये उस याद के साथ क्योंकि ज़िन्दगी जी थी उन लम्हों में हर लम्हा मुझे होने का एहसास दिला रहा था माँ के चेहरे की मुस्कान देखते ही बनती थी कि ऐसा भव्य कार्यक्रम प्रत्यक्ष रूप से पहली बार देख रहे थे और हो भी क्यों न आज उनका सबसे बड़ा सपना जो साकार होने जा रहा था अपने लाड़ले को स्टेज पर गाते हुए देखने का चूंकि पहली बार था तो डर और घबराहट का मेरे दिल में घर करना स्वाभाविक था एक जबरदस्त द्वंद्व चल रहा था मन में इतने लोग,पहली बार,न जान