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महक़ी हुई शाम थी घनेरी सुहानी रात थी। राहों के साहि

महक़ी हुई शाम थी घनेरी सुहानी रात थी।
राहों के साहिल पे वो ऐसे ठहरा था जरूर कोई बात थी।
अपने अश्कों से तरबतर होकर रास्ते पे नज़र टिकाये रहा,
कंपकपाते होंठों से हिज़्र की दास्तां सुनाई तो सहम गया मैं,
ये वही शाम वही रात वही वो जगह थी जहाँ उसकी पहली मुलाकात थी।।।

©Mohd Kamruzzama
  वही शाम वही रात

वही शाम वही रात #शायरी

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