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इंसान हर किसी से तो जीत सकता है लेकिन खुद के अंदर

इंसान हर किसी से तो जीत सकता है 
लेकिन खुद के अंदर चल रही हर रोज की कशमकश 
के सामने रोज हार जाता है......
हर जगह से  तकलीफों में घिरा हुआ इंसान 
इतना बेबस और लाचार हो जाता है 
की बस झूठी मुस्कुराहट के साथ रोज जीने लगता है, 
खुशी क्या होती है शायद उसे ये भी पता नहीं होता 
कि आखिरी वक्त कब खुश हुआ था, रोज अंदर की
 इतनी हलचल के साथ खुद को टूटा हुआ महसूस करना
 बहुत तकलीफ देता है, लेकिन क्या कर सकते हैं, 
हम सब की जिंदगी कहीं ना कहीं बस रोज ऐसे ही बीत रही है, 
जिसे हम जी नहीं रहे, बस काट रहे हैं.......

©Kushal
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 Anshu writer ᴩᴏᴏᴊᴀ ᴜᴅᴇꜱʜɪ Ambika Mallik भारत सोनी _इलेक्ट्रिशियन Sethi Ji