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प्रेम की जुती हुयी मिट्टी की जमीन.. ​समर्पण की उर्

प्रेम की जुती हुयी मिट्टी की जमीन..
​समर्पण की उर्वरता लिए हुए..
​फिर भी इसके भाग्य का..
​एक कोना ऊसर हो गया..
​
​एकदम से एक दरार पड़ गयी..
​प्रेम के माथे पर कलंक सा उभर आया..
​
​त्याग के बादलों ने नैनों के नीर से..
​प्रेम की जमीन को..
​बरसों बरस जी भरकर भिगोया..
​और...वो अरसे तक निश्छल भाव से..
​खुद में सब सोखती गयी..
​
​फिर जीवन के उस मरू धरातल पर..
​अहसासों,संवेदनाओं और दर्द की बाढ़ आ गयी..
​जिसमें प्रीत,विश्वास सब बहकर..
उससे ​कोसों दूर चले गए..
​ #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_में

#कलंक

प्रेम की जुती हुयी मिट्टी की जमीन..
​समर्पण की उर्वरता लिए हुए..
​फिर भी इसके भाग्य का..
​एक कोना ऊसर हो गया..
प्रेम की जुती हुयी मिट्टी की जमीन..
​समर्पण की उर्वरता लिए हुए..
​फिर भी इसके भाग्य का..
​एक कोना ऊसर हो गया..
​
​एकदम से एक दरार पड़ गयी..
​प्रेम के माथे पर कलंक सा उभर आया..
​
​त्याग के बादलों ने नैनों के नीर से..
​प्रेम की जमीन को..
​बरसों बरस जी भरकर भिगोया..
​और...वो अरसे तक निश्छल भाव से..
​खुद में सब सोखती गयी..
​
​फिर जीवन के उस मरू धरातल पर..
​अहसासों,संवेदनाओं और दर्द की बाढ़ आ गयी..
​जिसमें प्रीत,विश्वास सब बहकर..
उससे ​कोसों दूर चले गए..
​ #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_में

#कलंक

प्रेम की जुती हुयी मिट्टी की जमीन..
​समर्पण की उर्वरता लिए हुए..
​फिर भी इसके भाग्य का..
​एक कोना ऊसर हो गया..
akalfaaz9449

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